तेरे लबों के साये में
हुई आज सहर....
तेरे पहलु में
छुपी है आज की शाम....
शर्माता हुआ निकला चाँद
तेरे शानों की ओट से....
रात भी मांग रही है पनाह
तेरी जुल्फों के आँगन में....
और
मै
रहा हूँ तन्हा....
आज भी.
रविश ‘रवि’
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