Tuesday 29 July 2014

चारागार

दिन चढ़े से दिन ढल भी गया
फ़िज़ूल ही तेरी महफ़िल में आया
ख़ामोश साँसें भी बोल पड़ती थीं
जिसे देख कर,वो चारागार न आया.


© रविश 'रवि'
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Saturday 12 July 2014

उनका पता

कल फलक पर था चाँद पूरा का पूरा,
और मै था जमीं पर कुछ अधूरा-अधूरा,
गुजार दी शब् महकती चांदनी के साये में,
करता रहा इकट्ठा तारों को उसके इंतज़ार में,
ना हिज्र का मौसम थाना वस्ल की ही बात थी,
ये तो बस आँखों ही आँखों में कटी फिर एक रात थी,
वो ना आये और ना ही हवाओं ने कोई खबर दी,
हमने भी एक और रात उनके नाम कर दी,
अब ये मसाफ़त हो कैसे तै, ऐ चाँद तू ही बता,
या तो दे-दे उनकी खबर नहीं तो दे-दे उन्हें मेरा पता|



रविश 'रवि'
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