Friday 31 May 2013

मेरे होने की वजह

वो मेरे होने का सिला मांगता है
यूँ मेरे जीने की वजह मांगता है
खिलती है मेरी धूप उसके आंगन में,
वो मेरे मुस्कराने की वजह मांगता है.



रविश 'रवि'
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Thursday 23 May 2013

ज़िन्दगी के मसाईल

यूँ तो चला था
कारवां लेकर मै
सफ़र कटता गया
कारवां घटता गया

ज़िन्दगी के मसाइलों में
कुछ यूँ फंस गया
था एक परिंदा मै
पर उड़ना भूल गया

मेरे चराग  जला दें
किसी का दामन
अपने दरो-बाम को
अंधेरों में कैद कर लिया

देखूं न कोई ख्वाब
रात-रात भर जाग गया
दुआ को उठें  मेरे हाथ
खुदा से भी किनारा कर लिया


मसाइल : परेशानियां ,   दरो-बाम : दहलीज़ और छत


रविश 'रवि'
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Thursday 16 May 2013

नींद का सौदा


जैसे-जैसे
अक्स-ऐ-शाम
पैर फैलाती है
वैसे-वैसे
दिल बैठता जाता है
रात बैरन फिर आयेगी
नींद का
सौदा करने !!!




रविश 'रवि'
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