यूँ तो चला था
कारवां लेकर मै
सफ़र कटता गया
कारवां घटता गया
ज़िन्दगी के मसाइलों में
कुछ यूँ फंस गया
था एक परिंदा मै
पर उड़ना भूल गया
मेरे चराग न जला दें
किसी का दामन
अपने दरो-बाम को
अंधेरों में कैद कर लिया
देखूं न
कोई ख्वाब
रात-रात भर जाग गया
दुआ को उठें न मेरे हाथ
खुदा से
भी किनारा कर लिया |
मसाइल : परेशानियां , दरो-बाम : दहलीज़ और छत
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