Wednesday 25 September 2013

तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी

तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी
तेरे फैसलों से हैरान हूँ
 जाने किस मोड़ पे  गया हूँ
खुद पशेमान हूँ

है हर तरफ उजाला
फिर भी नहीं नज़र आता है कुछ
हैं कांधे तो बहुत
पर किस पे रखूं हाथ ?

हो गया हूँ तन्हा....बहुत
लगने लगा है यूँ
न है कोई मंजिल
 है कारवां

न है कोई पगडंडी और  ही राह
जिसको लूँ पकड़.....

खुद को पा रहा हूँ 'चक्रव्युहमें
क्या अभिमन्यु की तरह मै भी
रह जाऊँगा जिंदगी के चक्रव्युह में !!!
यूँ ही बन जाऊँगा ग्रास चक्रव्युह में......

कोई 'कृष्ण' भी तो नहीं आता है नज़र
जिससे पूछ सकूँ
खुद को बचाने का रास्ता !!!! 
       
न जाने किस मोड़ पे आ गयी है....जिंदगी
न है कोई कारवां.........न कोई मंजिल.....

तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी
तेरे फैसलों से हैरान हूँ
न जाने किस मोड़ पे आ गया हूँ
खुद पशेमान हूँ.




रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com

www.facebook.com/raviish.ravi