Monday 23 December 2013

हया

कुछ इस तरह आ मेरे आगोश में
कि मेरे वजूद को तेरी खबर न हो,
आँखों से पढ़ लूँ तेरी हया को मै
कि तेरे हिजाब को भी खबर न हो.



रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi


Monday 16 December 2013

फितरतें

हम इंसान भी फितरतें अजीब रखते हैं
देकर ज़ख्म,अपने दर्दों का हिसाब रखते हैं,

कहाँ ? कब ? क्यों? और क्या किया?
ये भूल कर, दूसरों की किताब रखते हैं,

दिखा कर आईना अपनी हसरतों का
न जाने गुनाह कितनी बार करते हैं,

तोड़ते हैं उसूलों को, कदम दर कदम
और सरे राह उसूलों की बात करते हैं,

दिए थे गम गए बरस,न जाने कितने
इस बरस उम्मीदों की आरज़ू रखते हैं,

ज़माने भर में कर के रुसवा दोस्तों को
साथ चलने की शिकायत बार-बार करते हैं,

दिखा कर,जता कर नाराज़गी का चलन,
वफाओं के आलम की चाहत रखते हैं.



रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi

Thursday 5 December 2013

उजालों की गिरह

दिन कट गया
उजालों की गिरह
खोलने में,
आज की रात
अंधेरों की जुल्फों को
संवारने का
इरादा है.




रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi


Tuesday 26 November 2013

दिल की बात !

बात जो दिल से निकली तो
दूर तलक जायेगी....
फिर ये खास नहीं
आम हो जायेगी,
झूठ कह नहीं पाउँगा और
सुच तुझ से
सुना नहीं जायेगा....मेरे मौला !


रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com

www.facebook.com/raviish.ravi

Monday 11 November 2013

आँखों के बंद होने से पहले

तन्हाई भरी रातों मे
अक्सर....
आँखों के बंद होने से पहले
कुछ धुंधले से साए
जाग जाते हैं,

कुछ आँखों मे नज़र आते हैं
कुछ आँखों से नज़र आते हैं

फिर .....
कुछ टूटे हुए लम्हे
कुछ छूटे हुए लम्हे
चुभो देते हैं नस्तर
दिल तक.....
तो कभी रूह तक...

आँखों की नमी भी सुख जाती है
उस दर्द की तपिश मे
जो महसूस होती है
यादों के टूटे हुए शीशों के टुकड़ों से

चुपके से धंस जाते हैं शरीर मे
और..
निकल पड़ती हैं लहू की बूंदें
दर्द के रूप मे.....

और हम करवटें दर करवटें  
बदलते रहते हैं
तन्हाई भरी रातों मे
अक्सर.....

आँखों के बंद होने से पहले |




रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi

Wednesday 6 November 2013

बिखरना

किस तरह
संभालूं खुद को,
कुछ न कुछ
छूट जाता है,
ऐ ज़िंदगी...
तुझे जीने में,
कभी रात
तो
कभी दिन
बीत जाता है.


रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com

www.facebook.com/raviish.ravi

Monday 14 October 2013

काली दीवारें

घर की दीवारों को
हैं बहुत उम्मीदें....
इस बरस तो वो चमकेंगी ही !!!

अरसा हो गया
दीवारों को रंगें हुए ...

तेरे नाज़ुक हाथों की
मेहंदी के निशां
आज भी चमकते हैं
काली पड़ी दीवारों पर....




रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi

Wednesday 2 October 2013

अजनबियों का शहर

ये अजनबियों का शहर है
देख कर चला करो,
है हर हाथ में खंजर
जरा संभल कर मिला करो.

बाल अक्सर हो जाते हैं
धूप में भी सफ़ेद,
आईने में इनको देख कर
चारागरी न किया करो.

खुद को मालिक समझने की
दिल कर ही देता है खता,
हवा भी अक्सर गिरा देती है 
जमीं के हो,जमीं पे ही चला करो.




रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi


Wednesday 25 September 2013

तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी

तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी
तेरे फैसलों से हैरान हूँ
 जाने किस मोड़ पे  गया हूँ
खुद पशेमान हूँ

है हर तरफ उजाला
फिर भी नहीं नज़र आता है कुछ
हैं कांधे तो बहुत
पर किस पे रखूं हाथ ?

हो गया हूँ तन्हा....बहुत
लगने लगा है यूँ
न है कोई मंजिल
 है कारवां

न है कोई पगडंडी और  ही राह
जिसको लूँ पकड़.....

खुद को पा रहा हूँ 'चक्रव्युहमें
क्या अभिमन्यु की तरह मै भी
रह जाऊँगा जिंदगी के चक्रव्युह में !!!
यूँ ही बन जाऊँगा ग्रास चक्रव्युह में......

कोई 'कृष्ण' भी तो नहीं आता है नज़र
जिससे पूछ सकूँ
खुद को बचाने का रास्ता !!!! 
       
न जाने किस मोड़ पे आ गयी है....जिंदगी
न है कोई कारवां.........न कोई मंजिल.....

तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी
तेरे फैसलों से हैरान हूँ
न जाने किस मोड़ पे आ गया हूँ
खुद पशेमान हूँ.




रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com

www.facebook.com/raviish.ravi

Sunday 18 August 2013

होले से

होले से
चूम लो मुझे,
मेरे लबों पर 
अपने जिस्म की 
सलवटें डाल दो...
मुद्दतें हुई
तेरी निगाहों की
रोशनी में 
नहाये हुए.


रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi

Sunday 28 July 2013

जमीं का टुकड़ा



कल फिर एक मौत पर
रोटियां सेकी गयीं
सियासतदानों ने कुछ
यूँ गम गलत किया,
जो लड़ते थे,झगड़ते थे
छोटी- छोटी बात पर  
आज जमीं का ये टुकड़ा तेरा
जमीं का वो टुकड़ा मेरा किया.


रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi

Thursday 25 July 2013

क़दमों के निशाँ

तेरे लबों की तपिश लटकी हुई है
टेबल लैम्प पर,
जो ज़ीरो वाट के बल्ब की रोशनी को
ओर तेज़ चमका रही है....

तेरी बाँहों के साये में
छत का घूमता पंखा,
मदमस्त होकर
तेरे बदन की खुश्बू को बिखेर रहा है... 

एक छोटा सा लम्हा
तेरी मुस्कुराहटों का !
चस्पा हुआ है दीवार के कोने में....

ओर तेरी खिलखिलाती हुई हंसी
तैर रही है पुर-जोर घर में,

बालकनी में उगा हुआ गुलाब का फूल 
अब भी महक जाता है
पानी उन की नन्ही-नहीं बूंदों से,
जो अक्सर छिटक जाती थीं तेरे गेसुओं से
जब तुम नहा कर बाल सुखाती थीं

ओर 

क़दमों के वो जाते हुए निशाँ 
आज भी हैं 

घर की दहलीज़ पर, 

जो बाहर जाते हुए तो नज़र आते हैं 

पर

वापस आते हुए नज़र नहीं आते हैं.



रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi

Wednesday 10 July 2013

उसके होने का मतलब...

आज आसमां ने मुझसे दगा कर लिया
उनकी आँखों से काजल चुरा भर लिया,
सांसों की महक से हवा यूँ मदमस्त हुई
फिर उसने न रुकने का इरादा कर लिया.

लरजते हुए लबों को जो छुआ बूंदों ने
सागर ने खुद के पानी को मीठा कर लिया,
सरमा कर खुद में सिमट गई ज़मीं भी
अपने कांधों से दुपट्टा जो सरका भर लिया.

बरसा है पानी कुछ यूँ झूम-झूम कर
उठा नज़रें आसमां को जो देख भर लिया,
देख कर रात में उनके काँधें का तिल
चाँद ने अपनी चांदनी से किनारा कर लिया.



रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi


Friday 5 July 2013

धूप के निशाँ

अक्सर घर की मुंडेर पर
धूप आकर बैठ जाती है
और
देर तलक बैठी ही रहती है

शायद...किसी का इंतज़ार करती है
कभी बिलकुल ख़ामोश रहती है
और कभी खुद से ही बातें करती है

ज्यों-ज्यों दिन चदता जाता है
त्यों-त्यों उसकी शिथिलता बढती जाती है
मगर आँखों में इंतज़ार की चमक
बरक़रार रहती है

और फिर...
शाम के जवान होते-होते
समेट लेती है खुद को
और चल पड़ती है वापस
उसी ख़ामोशी से
जिस ख़ामोशी से
बैठी थी मुंडेर पर आकर

और छोड़ जाती है
कुछ अनबुझे से,
कुछ अनसुलझे से
निशाँ,
घर की मुंडेर पर ! 


रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi


Wednesday 19 June 2013

बागवां....

वो ऊँगली...
जिसे थाम सीखा चलना मैंने,
वो हाथ....
जिसे थाम सीखा संभलना मैंने,
और
वो क़दमों के निशां...
जिन पे चल के जीना सीखा मैंने,

कांधे पे बैठा कर नुमाईश में घुमाना,
घोड़ा बन कर सारी दुनिया की सैर कराना,

मेरे एक रोने की आवाज़ पर,
सारे जहाँ की खुशियाँ क़दमों में डाल देना...
मेरी एक छोटी सी जिद के लिए,
अपनी बड़ी से बड़ी खुशी कुर्बान कर देना... 

थी चाहे बारिश की सीलन या धूप की तपत,
रहा वो हमेशा मेरा शरमाया, बन के एक दरख़्त... 

देता है आज भी हिम्मत वो हाथ कुछ यूँ –
गर हो परेशां तो थाम लेना मुझे,
हो तुम मेरे ही अंश....
और मै बागवां तुम्हारा.....
मै वक्त का मोहताज़ नहीं,
जो लौट के आ न सकूं...

शायद आ न सकता था आसमां वाला,
हर घर में.....
इसीलिए भेज दिया उसने खुद कों ज़मीं पर,
पिता के रूप में...
पिता के रूप में...
पिता के रूप में...


रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi