तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी
तेरे फैसलों से हैरान हूँ
न जाने किस मोड़ पे आ गया हूँ
खुद पशेमान हूँ
है हर तरफ उजाला
फिर भी नहीं नज़र आता है कुछ
हैं कांधे तो बहुत
पर किस पे रखूं हाथ ?
हो गया हूँ तन्हा....बहुत
लगने लगा है यूँ
न है कोई मंजिल
न है कारवां
न है कोई पगडंडी और न ही राह
जिसको लूँ पकड़.....
खुद को पा रहा हूँ 'चक्रव्युह' में
क्या अभिमन्यु की तरह मै भी
रह जाऊँगा जिंदगी के चक्रव्युह में !!!
यूँ ही बन जाऊँगा ग्रास चक्रव्युह में......
कोई 'कृष्ण' भी तो नहीं आता है नज़र
जिससे पूछ सकूँ
खुद को बचाने का रास्ता !!!!
न जाने किस मोड़ पे आ गयी
है....जिंदगी
न है कोई कारवां.........न कोई मंजिल.....
तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी
तेरे फैसलों से हैरान हूँ
न जाने किस मोड़ पे आ गया
हूँ
खुद पशेमान हूँ.
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi
No comments:
Post a Comment