Wednesday 28 January 2015

आरजू

शाम किसी की आरजू में गुजरती है
हर रात चाँद के दीद में उतरती है,
घूम के आया हूँ सहरा से हो कर मै,
ये निगाह खास चेहरे पर ठहरती है.


© रविश 'रवि'
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Thursday 22 January 2015

सियासत

बहुत फलफुल रहा है कारोबार बेवफाई का,
शहर में मौसम है चुनाव की गरमाई का,

सियासत में बदल जाते है चेहरे और मोहरे,   
निकलता है यहाँ रोज़, ज़नाज़ा वफाई का.


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Tuesday 6 January 2015

गया बरस

गया बरस तो यूँ ही गुजर गया
कुछ पाया तो कुछ हाथों से छुठ गया,
दिनों से भी लंबें गुजरें हैं
तसव्वुर तेरे आगोश के,
रातों से भी गहरे निकलें है
लम्स....तेरी यादों के.



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