Tuesday 9 December 2014

चेहरे

चेहरे दर चेहरे, परत दर परत
जबों में नकाब लिए घूम रहा हूँ,
ज़िन्दगी तुझ से उलझने के
नए ढंग ढूंढ रहा हूँ.


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Thursday 20 November 2014

खुदा हो गया

खुदा कुछ हैरां सा था,कुछ पशेमां सा था
अपने बनाये इंसा से कुछ परेशां सा था,
कल तलक झुकाता था सर जो मेरे दर पे
आज सजदा करते-करते खुद खुदा हो गया.

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Tuesday 28 October 2014

कहीं तो होगा

कर रहा हूँ  इकट्ठा  
आज फिर
नज्मों के कुछ टुकड़े,
कच्ची धुप की मुस्कराहटें,
सिली-सिली हवा की नमी,
सूरज की अंगड़ाईयाँ,
और 
ढलती शाम की रुसवाईयाँ,
कहीं तो 
मिल जाये 
तेरे होने 
का 
पता 
और
तेरा अक्स !     


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Monday 13 October 2014

आज की रात ....

बहुत मुश्किल से
गुजरेगी आज की रात,
है वादा किसी का
आयेगा आज वो मेरे पास,
सितारों...छुप जाओ
तुम आसमां के आगोश में,
न करो गुफ्तगू
बिता दो रात खामोश में,
चाँद...तु भी
चांदनी को समेट ले
हो  जाए वो रुसवा   
कोई उसे देख न ले.


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Monday 6 October 2014

तेरे साये

तेरी जुल्फों के साये में दिन छोड़ आया हूँ,
तेरे काँधें के तिल पर रातें भूल  आया हूँ.
चाँद निकलता है तेरी खुश्बू को ओढ़ कर,  
तेरे लबों पर साँसों के साये छोड़ आया हूँ.


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Wednesday 24 September 2014

शिकायत

लोग जीने की ज़िद में जिये जाते हैं 
तुम ज़िद में जीने की बात करते हो,
ज़ख्म देने के लिए इंसां क्या कम हैं 
तुम हवाओं से भी  शिकायत करते हो।


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Tuesday 9 September 2014

मौसम

यूँ तो होता है अब ये बहुत ही कम
तेरी याद हो और हो बारिशों का मौसम,

न रही अब वो फिजायें और न वो हवायें
ढलती शामों ने पहन लिया है लिबासे-गम,

कोई आके भर दे पैमाना उसकी यादों का
हिचकियों पर हो रही है ज़िंदगी अब खत्म.




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Monday 1 September 2014

पैमाना

नर्गिसी आँखों का पैमाना नहीं मिलता
उसके नाम का ठिकाना नहीं मिलता

भूल भी जाता न जाने मै कब का  
उसे भूलने का बहाना नहीं मिलता,

जल जाती हैं तड़प कर रात भर  
शमाओं को परवाना नहीं मिलता,

उन आँखों का सुरूर जो उतार दे  
शहर में वो मयखाना नहीं मिलता|



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Tuesday 26 August 2014

कहीं काबा...कहीं बुतखाना

कहीं काबा,कहीं बुतखाना,कहीं गिरजा बना डाला,
मेरे मौला....तेरी रहमत का बाज़ार बना डाला,
बनते थे जो कल तलक रहनुमा तेरी खुदाई का,
सरे-राह.... आज तेरी रूह का सौदा कर डाला,
दिखाता था वो जो अंधेरों में भी रोशनाई मुझे ,
बना के राम और साईं,टुकड़ों में उसे बाँट डाला.


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Wednesday 20 August 2014

खामोश लब !!!

बहुत कोशिश की आज मुस्कराने की,
 जाने क्यों लब खामोश रह गये ....
दो बूंद अश्क जो रुके थे आँखों में,
वो आँखों ही आँखों में बह गये..

बीत गया एक चक्र और ज़िन्दगी का,
मेरे हाथ आज भी ख़ाली रह गये.....
यूँ तो गुजरे थे मेरी राहगुज़र से,
पर आज भी वो खामोश रह गये |       


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Friday 15 August 2014

ये मेरा है वतन

ये मेरा है वतन
ये तेरा है वतन
ये हम सबका है वतन....
कहते जिसे हिन्दुस्तान हैं...
ये ही है हम सबकी आरजू
ये ही हमारी जान है.


कभी है रमजान की इबादत
कभी भोले का उदघोष है
कहीं है यीशु की खुश्बू
कहीं नानक का उपदेश है
हैं धर्म अनेक यहाँ पर लहू एक समान है...
ये हम सबका है वतन....
कहते जिसे हिन्दुस्तान हैं...


इंसान तो क्या यहाँ
पत्थर से भी रिश्ते जोड़े जाते हैं...
दूर गगन में बैठे चाँद को भी
हम मामा कह के बुलाते हैं...
मिट्टी और पानी में बसी हमारी जान है
ये हम सबका है वतन....
कहते जिसे हिन्दुस्तान हैं...


राम से है मर्यादा सीखी
गुरु गोबिंद से जोश लिया
कलाम से अग्नि चलाना सिखा  
बुद्ध से शांति का सन्देश लिया
हर तरफ बढ़ रही अपने देश की शान है
ये हम सबका है वतन....
कहते जिसे हिन्दुस्तान हैं...
 

न समझे कोई कमज़ोर हमें
हमें प्यार निभाना आता है udh
दुश्मनों को भी गले लगा कर
अपना दोस्त बनाना आता है
एकता और शांति ही हमारा पैगाम है...
ये हम सबका है वतन....
कहते जिसे हिन्दुस्तान हैं...


उठते है जो हाथ राखी बांधने को 
वो तलवार भी उठा सकते है
गर हो जरुरत तो कलम के सिपाही
दुश्मन को मारने का जिगर भी रखते हैं
अपने तिरंगे पर जान अपनी कुरबान है....
ये हम सबका है वतन....
कहते जिसे हिन्दुस्तान हैं...
 

ये मेरा है वतन
ये तेरा है वतन
ये हम सबका है वतन....
कहते जिसे हिन्दुस्तान हैं...
ये ही है हम सबकी आरजू
ये ही हमारी जान है.


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Wednesday 13 August 2014

अँधेरे !!!

सूरज से कहो
रात में भी
निकला करे....
काले अंधेरों से
डर लगता है !


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Tuesday 29 July 2014

चारागार

दिन चढ़े से दिन ढल भी गया
फ़िज़ूल ही तेरी महफ़िल में आया
ख़ामोश साँसें भी बोल पड़ती थीं
जिसे देख कर,वो चारागार न आया.


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Saturday 12 July 2014

उनका पता

कल फलक पर था चाँद पूरा का पूरा,
और मै था जमीं पर कुछ अधूरा-अधूरा,
गुजार दी शब् महकती चांदनी के साये में,
करता रहा इकट्ठा तारों को उसके इंतज़ार में,
ना हिज्र का मौसम थाना वस्ल की ही बात थी,
ये तो बस आँखों ही आँखों में कटी फिर एक रात थी,
वो ना आये और ना ही हवाओं ने कोई खबर दी,
हमने भी एक और रात उनके नाम कर दी,
अब ये मसाफ़त हो कैसे तै, ऐ चाँद तू ही बता,
या तो दे-दे उनकी खबर नहीं तो दे-दे उन्हें मेरा पता|



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Thursday 5 June 2014

उफ्फ़...ये गर्मी !

उफ्फ़...ये गर्मी !
न जाने कितनो को
तड़पा कर जायेगी
न जाने कितनो की जां
ले कर जायेगी,

लगता है इस बार
गर्मी के दिल ने
गहरी चोट खायी है,
इस साल की गर्मी
बहुत दिलजली है !



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Tuesday 27 May 2014

चाँद की बेचैनी !!!!

चाँद में है बेचैनी
और
तारों में भी है कुछ
सुगबुगाहट सी....
बस
कुछ और पल
और जायेगा
सूरज
उनकी रोशनी का
सौदा करने !!!!

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Monday 12 May 2014

कुछ ख्वाब पलते

दूर उफ़क पर कुछ ख्वाब पलते हैं
दूर उफ़क पर कुछ ख्वाब ढलते हैं

जब भी लम्हा टूट कर गिरा है आसमां से
मेरे होठों पर तेरी सांसों के चराग जलते हैं

ये शाम ठहर जाती है तेरी सुरमई आँखों में
मेरे जिस्म पर तेरी यादों के नक्श खींचतें हैं

रात ठहर जाती है तेरे कांधे के तिल के तले
मेरी रूह में तेरी रूह के गुलाब मिलते हैं.  



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Sunday 27 April 2014

रिश्तों की सीलन

दीवारों में दरारें
क्या आयीं,
कुछ रिश्तों में
सीलन पड़ गयी है.

वो धूप जो चमकाती थी
हमारे घर के आँगन को,
उस धूप में
गांठें आ गयी हैं.

कहते हैं कि
गर सीलन देर तक रहे तो,
फिर कभी उसकी
‘बू’ नहीं जाती है!



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Wednesday 23 April 2014

वतन-बेवतन

सियासतदानों का हुनर तो देख..ग़ालिब
हवाओं को भी तकसीम कर दिया
उड़ते थे जो परिंदे आज़ाद आसमां में,
उन्हें भी आशियानो में कैद कर दिया.

कल तलक जिसे समझते थे खूँ अपना
उसे अपने जिस्म से अलग कर दिया
मेरा गाँव....मेरा शहर....मेरी गलियां,
अपने ही वतन में ‘बेदखल’ कर दिया.



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Thursday 17 April 2014

धूप के निशाँ

अक्सर घर की मुंडेर पर
धूप आकर बैठ जाती है
और
देर तलक बैठी ही रहती है

शायद...किसी का इंतज़ार करती है
कभी बिलकुल ख़ामोश रहती है
और कभी खुद से ही बातें करती है

ज्यों-ज्यों दिन चदता जाता है
त्यों-त्यों उसकी शिथिलता बढती जाती है
मगर आँखों में इंतज़ार की चमक
बरक़रार रहती है

और फिर...
शाम के जवान होते-होते
समेट लेती है खुद को
और चल पड़ती है वापस
उसी ख़ामोशी से
जिस ख़ामोशी से
बैठी थी मुंडेर पर आकर

और छोड़ जाती है
कुछ अनबुझे से,
कुछ अनसुलझे से
निशाँ,
घर की मुंडेर पर !




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