Monday 12 May 2014

कुछ ख्वाब पलते

दूर उफ़क पर कुछ ख्वाब पलते हैं
दूर उफ़क पर कुछ ख्वाब ढलते हैं

जब भी लम्हा टूट कर गिरा है आसमां से
मेरे होठों पर तेरी सांसों के चराग जलते हैं

ये शाम ठहर जाती है तेरी सुरमई आँखों में
मेरे जिस्म पर तेरी यादों के नक्श खींचतें हैं

रात ठहर जाती है तेरे कांधे के तिल के तले
मेरी रूह में तेरी रूह के गुलाब मिलते हैं.  



© रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com

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