raviish 'ravi'
Wednesday 24 September 2014
शिकायत
लोग जीने की
ज़िद
में
जिये
जाते
हैं
तुम
ज़िद
में
जीने
की
बात
करते
हो
,
ज़ख्म
देने
के
लिए
इंसां
क्या
कम
हैं
तुम
हवाओं
से
भी
शिकायत करते हो।
©
रविश
'
रवि
'
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Tuesday 9 September 2014
मौसम
यूँ तो होता है अब ये बहुत ही कम
तेरी याद हो और हो बारिशों का मौसम,
न रही अब वो फिजायें और न वो हवायें
ढलती शामों ने पहन लिया है लिबासे-गम,
कोई आके भर दे पैमाना उसकी यादों का
हिचकियों पर हो रही है ज़िंदगी अब खत्म.
©
रविश
'
रवि
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Monday 1 September 2014
पैमाना
नर्गिसी आँखों का पैमाना नहीं मिलता
उसके नाम का ठिकाना नहीं मिलता
भूल भी जाता न जाने मै कब का
उसे भूलने का बहाना नहीं मिलता,
जल जाती हैं तड़प कर रात भर
शमाओं को परवाना नहीं मिलता,
उन आँखों का सुरूर जो उतार दे
शहर में वो मयखाना नहीं मिलता|
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रविश
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रवि
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