Tuesday 28 October 2014

कहीं तो होगा

कर रहा हूँ  इकट्ठा  
आज फिर
नज्मों के कुछ टुकड़े,
कच्ची धुप की मुस्कराहटें,
सिली-सिली हवा की नमी,
सूरज की अंगड़ाईयाँ,
और 
ढलती शाम की रुसवाईयाँ,
कहीं तो 
मिल जाये 
तेरे होने 
का 
पता 
और
तेरा अक्स !     


© रविश 'रवि'
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Monday 13 October 2014

आज की रात ....

बहुत मुश्किल से
गुजरेगी आज की रात,
है वादा किसी का
आयेगा आज वो मेरे पास,
सितारों...छुप जाओ
तुम आसमां के आगोश में,
न करो गुफ्तगू
बिता दो रात खामोश में,
चाँद...तु भी
चांदनी को समेट ले
हो  जाए वो रुसवा   
कोई उसे देख न ले.


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Monday 6 October 2014

तेरे साये

तेरी जुल्फों के साये में दिन छोड़ आया हूँ,
तेरे काँधें के तिल पर रातें भूल  आया हूँ.
चाँद निकलता है तेरी खुश्बू को ओढ़ कर,  
तेरे लबों पर साँसों के साये छोड़ आया हूँ.


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