Tuesday 28 October 2014

कहीं तो होगा

कर रहा हूँ  इकट्ठा  
आज फिर
नज्मों के कुछ टुकड़े,
कच्ची धुप की मुस्कराहटें,
सिली-सिली हवा की नमी,
सूरज की अंगड़ाईयाँ,
और 
ढलती शाम की रुसवाईयाँ,
कहीं तो 
मिल जाये 
तेरे होने 
का 
पता 
और
तेरा अक्स !     


© रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com

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