यूँ तो होता है अब ये बहुत ही कम
तेरी याद हो और हो बारिशों का मौसम,
न रही अब वो फिजायें और न वो हवायें
ढलती शामों ने पहन लिया है लिबासे-गम,
कोई आके भर दे पैमाना उसकी यादों का
हिचकियों पर हो रही है ज़िंदगी अब खत्म.
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