नर्गिसी आँखों का पैमाना नहीं मिलता
उसके नाम का ठिकाना नहीं मिलता
भूल भी जाता न जाने मै कब का
उसे भूलने का बहाना नहीं मिलता,
जल जाती हैं तड़प कर रात भर
शमाओं को परवाना नहीं मिलता,
उन आँखों का सुरूर जो उतार दे
शहर में वो मयखाना नहीं मिलता|
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