Tuesday 26 August 2014

कहीं काबा...कहीं बुतखाना

कहीं काबा,कहीं बुतखाना,कहीं गिरजा बना डाला,
मेरे मौला....तेरी रहमत का बाज़ार बना डाला,
बनते थे जो कल तलक रहनुमा तेरी खुदाई का,
सरे-राह.... आज तेरी रूह का सौदा कर डाला,
दिखाता था वो जो अंधेरों में भी रोशनाई मुझे ,
बना के राम और साईं,टुकड़ों में उसे बाँट डाला.


© रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com

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