सियासतदानों का हुनर तो देख..ग़ालिब
हवाओं को भी तकसीम कर दिया
उड़ते थे जो परिंदे आज़ाद आसमां में,
उन्हें भी आशियानो में कैद कर दिया.
कल तलक जिसे समझते थे खूँ अपना
उसे अपने जिस्म से अलग कर दिया
मेरा गाँव....मेरा शहर....मेरी गलियां,
अपने ही वतन में ‘बेदखल’ कर दिया.
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