Tuesday 29 July 2014

चारागार

दिन चढ़े से दिन ढल भी गया
फ़िज़ूल ही तेरी महफ़िल में आया
ख़ामोश साँसें भी बोल पड़ती थीं
जिसे देख कर,वो चारागार न आया.


© रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com

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