तेरे लबों की तपिश लटकी हुई है
टेबल लैम्प पर,
जो ज़ीरो वाट के बल्ब की रोशनी को
ओर तेज़ चमका रही है....
तेरी बाँहों के साये में
छत का घूमता पंखा,
मदमस्त होकर
तेरे बदन की खुश्बू को बिखेर रहा है...
एक छोटा सा लम्हा
तेरी मुस्कुराहटों का !
चस्पा हुआ है दीवार के कोने में....
ओर तेरी खिलखिलाती हुई हंसी
तैर रही है पुर-जोर घर में,
बालकनी में उगा हुआ गुलाब का फूल
अब भी महक जाता है
पानी उन की नन्ही-नहीं बूंदों से,
जो अक्सर छिटक जाती थीं तेरे गेसुओं से
जब तुम नहा कर बाल सुखाती थीं
ओर
क़दमों के वो जाते हुए निशाँ
आज भी हैं
घर की दहलीज़ पर,
जो बाहर जाते हुए तो नज़र आते हैं
पर
वापस आते हुए नज़र नहीं आते हैं.
रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi
टेबल लैम्प पर,
जो ज़ीरो वाट के बल्ब की रोशनी को
ओर तेज़ चमका रही है....
तेरी बाँहों के साये में
छत का घूमता पंखा,
मदमस्त होकर
तेरे बदन की खुश्बू को बिखेर रहा है...
एक छोटा सा लम्हा
तेरी मुस्कुराहटों का !
चस्पा हुआ है दीवार के कोने में....
ओर तेरी खिलखिलाती हुई हंसी
तैर रही है पुर-जोर घर में,
बालकनी में उगा हुआ गुलाब का फूल
अब भी महक जाता है
पानी उन की नन्ही-नहीं बूंदों से,
जो अक्सर छिटक जाती थीं तेरे गेसुओं से
जब तुम नहा कर बाल सुखाती थीं
ओर
क़दमों के वो जाते हुए निशाँ
आज भी हैं
घर की दहलीज़ पर,
जो बाहर जाते हुए तो नज़र आते हैं
पर
वापस आते हुए नज़र नहीं आते हैं.
रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
www.facebook.com/raviish.ravi
No comments:
Post a Comment