तेज़ हवा के झोंके ने
खिड़की के दरवाज़ों को तिरछा कर दिया....
बारिश की बूंदों ने
मन की किताब को सीला कर दिया....
वो जो गया था पिछले बरस
यूँ ही तन्हा छोड़ कर....
आज भी हैं उसके
गीले क़दमों के निशां इस कमरे में....
यूँ तो साँसे भी हैं चल रही और
ज़िन्दगी भी नहीं थमी....
मगर उसे कोई कैसे बताये,
उसके बगैर ये ज़िन्दगी
भी तो ज़िन्दगी नहीं.
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