Monday 17 June 2013

फिर वही मौसम

वही तो है मौसम आज भी 
और रुत भी वही छाई है,
गए बरस में हुआ था यूँ ही 
तेरी पलकों तले शाम हुई थी...

है मेरे सीने पर आज भी वो
पानी की नन्ही-नन्ही बूंदें
जो तेरे लबों को छू कर
लजा के शर्मसार हुई थीं....

आज फिर बरसें है बादल 
भीगा है मौसम इस तरह
मानों कल ही तेरे शानों पर 
मेरे ख्वाबों की रात हुई थी.



रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
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