Tuesday 11 March 2014

खामोश लब

बहुत कोशिश की आज मुस्कराने की,
न जाने क्यों लब खामोश रह गए ....

दो बूंद अश्क जो रुके थे आँखों में,
वो आँखों ही आँखों में बह गए....

बीत गया एक चक्र और ज़िन्दगी का,
मेरे हाथ आज भी ख़ाली रह गए.....

यूँ तो गुजरे थे मेरी रह-गुज़र से,
पर आज भी वो खामोश रह गए |


© रविश 'रवि'
raviishravi.blogspot.com
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