वही तो है मौसम आज भी
और रुत भी वही छाई है,
गए बरस में हुआ था यूँ ही
तेरी पलकों तले शाम हुई थी...
और रुत भी वही छाई है,
गए बरस में हुआ था यूँ ही
तेरी पलकों तले शाम हुई थी...
है मेरे सीने पर आज भी वो
पानी की नन्ही-नन्ही बूंदें
जो तेरे लबों को छू कर
लजा के शर्मसार हुई थीं....
आज फिर बरसें है बादल
भीगा है मौसम इस तरह
मानों कल ही तेरे शानों पर
मेरे ख्वाबों की रात हुई थी.
© रविश 'रवि'
पानी की नन्ही-नन्ही बूंदें
जो तेरे लबों को छू कर
लजा के शर्मसार हुई थीं....
आज फिर बरसें है बादल
भीगा है मौसम इस तरह
मानों कल ही तेरे शानों पर
मेरे ख्वाबों की रात हुई थी.
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